बता दें की 6 दिसंबर 1956 इस दिन बाबा साहेब अंबेडकर का निधन हो गया था. भारत के शोषितों और कमज़ोर तबक़ों के संरक्षक डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर का जाना उनके लिए बहुत बड़ा झटका था.अपना अस्तित्व बचाने और पढ़ाई के लिए डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर का संघर्ष, दलितों के उत्थान के लिए उनके प्रयास और आज़ाद भारत के संविधान के निर्माण में उनका योगदान बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है.उनके लिए ये सफ़र बहुत मुश्किल रहा था. इस पूरे सफ़र के दौरान, बाबासाहेब कई बीमारियों से जूझते रहे थे. वो डायबिटीज़, ब्लडप्रेशर, न्यूराइटिस और आर्थराइटिस जैसी लाइलाज़ बीमारियों से पीड़ित थे.बता दें की डाइबिटीज़ के चलते उनका शरीर बेहद कमज़ोर हो गया था. गठिया की बीमारी के चलते वो कई कई रातों तक बिस्तर पर दर्द से परेशान रहते थे.जब हम बाबासाहेब आंबेडकर की ज़िंदगी के आख़िरी कुछ घंटों के बारे में बात करते हैं तो पता चलता है कि उनकी सेहत किस क़दर बिगड़ी हुई थी.बाबासाहेब ने 6 दिसंबर 1956 को सुबह के वक़्त सोते हुए आख़िरी सांस ली थी.
बता दें की बासाहब आंबेडकर के अख़बार ‘मूकनायक’ के 100 साल डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर का आख़िरी सार्वजनिक कार्यक्रम राज्यसभा की कार्यवाही में शिरकत करने का था. नवंबर के आख़िरी तीन हफ़्तों के दौरान बाबासाहेब दिल्ली से बाहर थे. 12 नवंबर को वो पटना होते हुए काठमांडू के लिए रवाना हुए थे. 14 नवंबर को काठमांडू में विश्व धर्म संसद का आयोजन हुआ था.बाबासाहेब के साथ उनके डॉक्टर मालवंकर थे.उन्होंने बाबासाहेब की सेहत जांची और कहा कि अगर बाबासाहेब, संसद की कार्यवाही में शामिल होने चाहते हैं, तो उन्हें कोई एतराज़ नहीं. 4 दिसंबर को बाबासाहेब संसद गए. राज्यसभा की कार्यवाही में हिस्सा लिया और दोपहर बाद लौट आए. लंच के बाद वो सो गए. ये बाबासाहेब का संसद का आख़िरी दौरा था.