फाल्गुन पूर्णिमा के दिन पूरे देश में धूमधाम से होली का त्योहार मनाया जाता है. कहीं रंगों से, कहीं अबीर गुलाल तो कहीं फूलों से होली खेली जाती है, लेकिन काशी की मसाने की होली पूरी दुनिया में अनोखी और रहस्यमयी होली परंपरा है. परंपरा के अनुसार, इस दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर और मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख से होली खेली जाती है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर राख से होली खेली क्यों जाती हैं ?यु तो ‘मसान होली’ के साथ- साथ ‘भस्म की होली ‘के नाम से जाना जाता है। बता दें, मसान की होली में नागा साधुओं संग आम लोग भी होली खेलते हैं। ऐसा कहा जाता है, कि इस दौरान महादेव खुद अघोरियों के साथ होली खेलने आते हैं। मोक्ष की नगरी के नाम से मशहूर बनारस में लोग मौत को भी आशीर्वाद की तरह गले लगाते हैं। यहां गंगा नदी के घाटों पर अग्नि हमेशा जलती रहती है। बनारस का मुख्य श्मशान घाट मणिकर्णिका घाट लोगों की मृत्यु के बीच इस अनूठी परंपरा को सदियों से निभा रहा है।पौराणिक मान्यता है कि एक बार भगवान शिव ने यमराज को हराया था। इसलिए मसान की होली, मृत्यु पर विजय का प्रतीक भी मानी जाती है।
मसान की राख वाली होली के पीछे संदेश है कि जीवन क्षणभंगुर है। हमें इससे बिना डरे, जीवन का आनंद लेना चाहिए। साथ ही याद रखना चाहिए कि मृत्यु एक सत्य है जिसे स्वीकार करना ही होगा। मसान की होली मृत्यु के भय को त्यागकर जीवन जीने का संदेश देती है। आखिर क्यों प्रसिद्ध है मसान की होली?तो बता दे पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने मसान की होली की शुरुआत की थी. ऐसा माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर माता पार्वती का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे. तब उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल के साथ होली खेली थी, लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, के साथ होली नहीं खेल पाए थे. इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद भोले शंकर ने श्मशान में रहने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी. तभी से काशी विश्वनाथ में मसान की होली खेलने की परंपरा चली आ रही है. चिता की राख से होली खेलने की वजह से ये परंपरा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है.पूरी दुनिया में भारत का काशी ही इकलौता ऐसा शहर है जहां मसान की होली खेली जाती है.